बुलंदशहर एक विहंगावलोकन राजा अहिबरन ने बसाया था यह नगर इसीलिए यहां के लोग आज भी आप को सरनेम बरनी रखे हुए मिल जायेंगे।शुरू में इसे बरन नगर ही कहा गया ,समुद्र तल से अपेक्षाकृत ऊंचाई (हाई लेंड )पर अवस्तिथि के कारण इसे बुलंद -शहर कहा गया। यहां बोली जाने वाली खड़ी बोली ही अपने उप मार्जित परिष्कृत रूप में उपन्यासिक हिंदी बन गई ,अनेक साहित्यिक हस्तियां ब्रजमंडल के इस नगर से जुड़ी रहीं हैं। किसे प्रमुख कहें किसे गौड़ कहना मुश्किल है। विभाजन के बाद पाकिस्तान चली गईं औरतों की सबसे बड़ी हिमायतिन किश्वर नाहीद शायरी के लिए जानी गईं हैं यहीं पैदा हुईं : 'जब मैं न हूँ तो शहर में मुझ सा कोई तो हो दीवार-ए-ज़िन्दगी में दरीचा कोई तो हो इक पल किसी दरख़्त के साए में साँस ले सारे नगर में जानने वाला कोई तो हो' 'होती है ज़िंदगी की हरारत रगों में सर्द सूखे हुए बदन पे ये चमड़ा कसा भी देख पहचान अपनी हो तो मिले मंज़िल-ए-मुराद 'नाहीद' गाहे गाहे सही आइना भी देख' 'एक ही आवाज़ पर वापस पलट आएंगे लोग तुझ को फिर अप...