प्रेम का एक रंग ये भी है : मेरे यार ! क्यानहीं है वह ,क्या नहीं हो तुम -वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई ) मेरे तैं महावत का अंकुश ,अश्व का बल हो तुम , गज़रे की खुशबू ,ठुमरी का भाव ,दादरे की ताल हो तुम। मन का आलोड़न रचना का प्रसव हो तुम , लय औ ताल अब दोनों ही हो ज़िंदगी का तुम। तुम ही बतला दो अब क्या नहीं हो तुम ?
क्या नहीं है वह ,क्या नहीं हो तुम -वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई ) मेरे तैं महावत का अंकुश ,अश्व का बल हो तुम , गज़रे की खुशबू ,ठुमरी का भाव ,दादरे की ताल हो तुम। मन का आलोड़न रचना का प्रसव हो तुम , लय औ ताल अब दोनों ही हो ज़िंदगी का तुम। तुम ही बतला दो अब क्या नहीं हो तुम ?