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क्या नहीं है वह ,क्या नहीं हो तुम

क्या नहीं है वह ,क्या नहीं हो तुम  -वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई )

मेरे तैं महावत का अंकुश ,अश्व का बल हो तुम ,

गज़रे की खुशबू ,ठुमरी का  भाव ,दादरे  की ताल हो तुम। 

मन का आलोड़न रचना का प्रसव हो तुम ,

लय औ ताल अब दोनों ही हो ज़िंदगी का तुम। 

तुम ही बतला दो अब क्या नहीं हो तुम ?


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विद्या ददाति विनयं विनयाद्  याति पात्रतां। पात्रत्वाद् धनमान् प्रोति धनार्द्धमं तत : सुखं।| (अंग्रेजी हिंदी भावार्थ सहित ) Knowledge makes one humble ,humility begets worthiness ,worthiness creates wealth and enrichment , enrichment leads to right conduct ,right conduct brings contentment. अर्थात विद्या विनय देती है (विनयदायिनी  है ),विनय पात्रता प्रदान करता है ,पात्रता से धन ,धन से धर्म और धर्म से सुख प्राप्त होता है। कृपया इसे भी तवज़्ज़ो देवें धन्यवाद ! https://www.youtube.com/watch?v=i-yDnQ2aaE0    

हापुड़ के पापड़ ,जलेसर की भंग , शिकारपुर के चूतिया बुलंशहर के नंग

बुलंदशहर एक विहंगावलोकन  राजा अहिबरन ने बसाया था यह नगर इसीलिए यहां के लोग आज भी आप को सरनेम बरनी रखे हुए मिल जायेंगे।शुरू में इसे बरन नगर ही कहा गया ,समुद्र तल से अपेक्षाकृत ऊंचाई (हाई लेंड )पर अवस्तिथि के कारण इसे बुलंद -शहर  कहा गया।  यहां बोली  जाने वाली खड़ी बोली ही अपने उप मार्जित परिष्कृत रूप में उपन्यासिक हिंदी  बन गई ,अनेक साहित्यिक हस्तियां ब्रजमंडल के इस नगर से  जुड़ी  रहीं हैं। किसे प्रमुख कहें किसे गौड़ कहना मुश्किल है। विभाजन के बाद पाकिस्तान चली गईं औरतों की सबसे बड़ी हिमायतिन किश्वर नाहीद शायरी के लिए जानी गईं हैं यहीं पैदा हुईं : 'जब मैं न हूँ तो शहर में मुझ सा कोई तो हो  दीवार-ए-ज़िन्दगी में दरीचा  कोई  तो हो  इक पल किसी दरख़्त के साए में साँस ले  सारे नगर में जानने वाला कोई तो हो'  'होती है ज़िंदगी की हरारत रगों में सर्द  सूखे हुए बदन पे ये चमड़ा कसा भी देख  पहचान अपनी हो तो मिले मंज़िल-ए-मुराद  'नाहीद' गाहे गाहे सही आइना भी देख'  'एक ही आवाज़ पर वापस पलट आएंगे लोग  तुझ को फिर अपने घरों में ढूंढने जाएंगे लोग  फिर नई ख़्वाहिश के ज़र्रों से बनाएं

तुम ही बतला दो अब क्या नहीं हो तुम ?

प्रेम का एक रंग ये भी है : मेरे यार ! क्यानहीं है वह ,क्या नहीं हो तुम -वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई ) मेरे तैं महावत का अंकुश ,अश्व का बल हो तुम , गज़रे की खुशबू ,ठुमरी का भाव ,दादरे की ताल हो तुम। मन का आलोड़न रचना का प्रसव हो तुम , लय औ ताल अब दोनों ही हो ज़िंदगी का तुम। तुम ही बतला दो अब क्या नहीं हो तुम ?