क्या नहीं है वह ,क्या नहीं हो तुम -वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई )
मेरे तैं महावत का अंकुश ,अश्व का बल हो तुम ,
गज़रे की खुशबू ,ठुमरी का भाव ,दादरे की ताल हो तुम।
मन का आलोड़न रचना का प्रसव हो तुम ,
लय औ ताल अब दोनों ही हो ज़िंदगी का तुम।
तुम ही बतला दो अब क्या नहीं हो तुम ?
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